"उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक तुम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते।"
— स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद के ये प्रेरणादायक शब्द न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि देश की प्रगति के लिए भी हैं। विशेष रूप से आज की युवा पीढ़ी को यह असीम ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह वर्ग जीवंतता, आनंद, ऊर्जा, और जुनून से भरा है, और इसे उचित मार्गदर्शन प्रदान किया जाए तो यह समाज के उत्थान का माध्यम बन सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा लिया गया "विकसित भारत 2047" का संकल्प तभी पूर्ण होगा जब इन पाँच प्रणों का उद्देश्य पूरा होगा:
1. विकसित भारत का लक्ष्य
यह लक्ष्य तभी साकार होगा जब युवा पीढ़ी मोबाइल पर रील्स स्क्रॉल करने के बजाय देश के भविष्य की चिंता करेगी। विश्व की सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश यदि अभी भी विकासशील देशों की सूची में है, तो यह कहीं न कहीं हमारी निश्चिंतता का परिणाम है। जिन युवाओं के हाथों में कलम और आँखों में देशभक्ति होनी चाहिए थी, उनमें से कुछ के हाथों में पत्थर, बंदूक और आँखों में बदले की भावना नज़र आती है। जिन्हें सरहद पर देश के लिए मरने-जीने की कसमें खानी चाहिए, वे आज प्यार-मोहब्बत में मिटने की कसमें खा रहे हैं।
2. गुलामी की मानसिकता से मुक्ति
अंग्रेज़ तो चले गए, लेकिन हम अभी भी मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाए हैं। आज भी कुछ लोग मानसिक संकीर्णता के गुलाम हैं, जो अंग्रेजी भाषा बोलने वाले को पढ़ा-लिखा और क्षेत्रीय भाषा वाले को गंवार समझते हैं। लेकिन आज के युवाओं को चाहिए कि वे इन रूढ़िवादी विचारों को मिटाकर समाज में एक उदाहरण पेश करें, जैसे स्वामी विवेकानंद ने किया था।
3. अपनी विरासत पर गर्व
विदेशों में जाकर बड़ी-बड़ी इमारतें देखकर प्रसन्न होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस मिट्टी पर हम जन्मे हैं, वह वास्तव में सोने की चिड़िया थी। इसे वापस सोने की चिड़िया बनाना हमारा कर्तव्य है, जिसे हमें युवा वर्ग को पूरी निष्ठा से निभाना होगा।
4. एकता और एकजुटता
यह विविध संस्कृतियों से जुड़ा भारत, जिसे हमारे सेनानियों ने अपने लहू से सींचा है, जाति और धर्म के दोराहे पर क्यों खड़ा है? क्यों न देश के खातिर फिर से एकजुट होकर दुनिया में अपना परचम लहराएँ और अपने देश को महान बनाएँ?
5. नागरिक कर्तव्यों का पालन
देश की भावी पीढ़ी होने के नाते हमारा कर्तव्य और धर्म है कि खुद से पहले देश को रखें। सभी कुरीतियों को मिटाकर अपना देश महान बनाएँ और फिर से विश्वगुरु कहलाएँ।
अंत में
आखिर में, सभी युवाओं का आह्वान करते हुए मैं कहूँगी:
"कर्म करो कुछ ऐसा, ये इतिहास तुम्हें भी याद करे।
राष्ट्रभूमि तुमको पाने की, ईश्वर से फरियाद करे।"
आओ, मिलकर एक नए भारत का निर्माण करें जहाँ हर युवा अपने सपनों के साथ देश के सपनों को भी साकार करने में योगदान दे।
लेखक का परिचय:
मेरा नाम वेदिका पोरवाल है और मैं बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा हूँ। मेरा सपना है देश की सेवा में अपना संपूर्ण योगदान दूँ, इसलिए मैं बड़े होकर सिविल सर्विस में जाना चाहती हूँ। देशभक्ति गीत सुनना एवं वीरों की गाथाएँ सुनना मेरी रुचि है।