बचपन से शिव तक: मेरा पूरा महादेव से जुड़ाव (लेखिका- खुशी शर्मा)

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भारत की आध्यात्मिक परंपराओं में कांवड़ यात्रा का विशेष स्थान है। यह मात्र एक तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि भक्ति, अनुशासन और नि:स्वार्थ सेवा की सजीव अभिव्यक्ति है। हर वर्ष श्रावण के पावन महीने में हज़ारों श्रद्धालु यह यात्रा करते हैं, अपने कंधों पर पवित्र गंगाजल लेकर, हर क़दम पर "हर हर महादेव" का जयघोष करते हुए। बहुतों के लिए यह एक सीमित यात्रा होती है, पर मेरे लिए यह एक जीवन भर का जुड़ाव है। मेरा सौभाग्य है कि मैं पूरा महादेव मंदिर के पास के गाँव से हूँ एक ऐसा स्थान जो शिवभक्तों की श्रद्धा का केंद्र है और जिसका इतिहास अत्यंत पावन है।

मैं बचपन से ही इस मंदिर में जाती रही हूँ, विशेष रूप से अपने पिताजी के साथ, और आज भी हर महीने वहाँ दर्शन करने जाती हूँ। ये दर्शन केवल परंपरा नहीं हैं, बल्कि मेरे आत्मिक शांति का स्रोत हैं। श्रावण के महीने में जब पूरा महादेव क्षेत्र भक्ति के रंग में रंग जाता है, मंदिर फूलों से सजा होता है, घंटियाँ निरंतर बजती हैं, और "हर हर महादेव" के जयघोष से वातावरण गूंज उठता है तब सचमुच ऐसा लगता है जैसे स्वयं भगवान शिव वहाँ विराजमान हों।

मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ भगवान परशुराम ने कठोर तपस्या की थी और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए थे। यह भी कहा जाता है कि परशुराम जी ने ही सबसे पहले कांवड़ भगवान शिव को चढ़ाई थी। तभी से यह दिव्य परंपरा आरंभ हुई, जो आज भी पूरी श्रद्धा और आस्था से निभाई जाती है।

हर साल हज़ारों कांवड़िए, भगवा वस्त्र पहनकर, गंगाजल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर लेकर लंबी दूरी तय करते हैं। वे नंगे पाँव, तेज धूप में, कठिन रास्तों से होकर केवल एक उद्देश्य से चलते हैं अपने भोलेनाथ को जल अर्पित करना। जब वे पूरा महादेव पहुँचते हैं, तो उनकी आंखों में श्रद्धा के आँसू और चेहरे पर अपार संतोष होता है। उस क्षण का वातावरण शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। ढोल-नगाड़े, भजन, कीर्तन और भक्तों की भीड़ सब मिलकर एक आध्यात्मिक उत्सव का रूप ले लेते हैं।

मेरे लिए इस यात्रा का सबसे सुंदर पहलू है सेवा। जब मैं छोटी थी, तब से ही मुझे भंडारे में सेवा करने का बहुत मन रहता था। मैं रास्ते में खड़ी होकर कांवड़ियों को पानी पिलाती थी, उन्हें भोजन परोसती थी, और उनसे बातचीत करके उनकी श्रद्धा को महसूस करती थी। वो पल मेरे लिए बहुत कीमती होते थे। आज भी, जब मैं सेवा करती हूँ, तो मन को वही संतोष और शांति मिलती है। उनके चेहरे की मुस्कान और “भोले बाबा की जय” की आवाज़ें मेरे मन में घर कर जाती हैं।

कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, यह जीवन के कई मूल्यों को सिखाती है धैर्य, क्योंकि यह यात्रा शारीरिक रूप से कठिन होती है; अनुशासन, क्योंकि कांवड़िए यात्रा के दौरान कई नियमों का पालन करते हैं; दया और करुणा, क्योंकि हजारों लोग बिना स्वार्थ के इन भक्तों की सेवा करते हैं; और विनम्रता, जो हमें यह याद दिलाती है कि आस्था के आगे सब समान हैं। पूरा महादेव मेरे लिए सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि मेरी आस्था की आत्मा है। यह स्थान मुझे शक्ति, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। यहाँ आकर ऐसा लगता है जैसे मैं स्वयं शिव के चरणों में बैठी हूँ।

कांवड़ यात्रा मुझे हर वर्ष प्रेरित करती है। यह मुझे मेरे संस्कृतिक मूल्यों, जड़ों, और सेवा की भावना से जोड़े रखती है। आधुनिक युग में भी यह परंपरा न केवल जीवित है, बल्कि और अधिक व्यापक और जागरूक हो रही है। यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि जब हम आस्था, प्रेम और सेवा के मार्ग पर चलते हैं, तो जीवन एक सुंदर पूजा बन जाता है।

लेखिका के बारे में:

मैं खुशी शर्मा हूँ, 18 वर्षीया युवती, जो बेहरामपुर खास, मेरठ से हूँ। वर्तमान में मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान (ऑनर्स) में स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा हूँ। मैं ‘माय भारत’ से सक्रिय रूप से जुड़ी हूँ और ऑनलाइन माध्यमों से सामाजिक कार्यों में भाग लेती हूँ। मुझे सार्वजनिक भाषण देना और लेखन करना बेहद पसंद है, विशेषकर सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विषयों पर। पूरा महादेव और कांवड़ यात्रा से मेरी गहरी आस्था जुड़ी हुई है, और मुझे अपने विचारों को शब्दों व सेवा के माध्यम से व्यक्त करना अत्यंत प्रिय है।

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